Ashtavinayak temples: भारतीय संस्कृति में अष्टविनायक मंदिरों का महत्व

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Ashtavinayak Temples: भारतीय संस्कृति वैसे तो अनेक आश्चर्यो से भरी पडी़ हैं परन्तु आज हम आपको अपने इस लेख में अष्टविनायक कौन हैं और लोगों के बीच उनके प्रति कितनी आस्था हैं, अष्टविनायक जी साक्षात् कहा विराजमान हैं से सम्बन्धित महत्वपूर्ण जानकारी आपके साथ शेयर करेगें।

अष्टविनायक कौन हैं

अष्टविनायक हमारी देवभाषा (संस्कृत) का शब्द हैं जिसमें अगर हम इस शब्द का संधि विच्छेद करें तो। अष्ट को आठ और विनायक को गणेश कहा जाता हैं। इन्हीं दोनों शब्दों से मिलकर बना हैं। अष्टविनायक जिनको आठ गणेश कहा जाता हैं। जैसा कि हम जानतें हैं कि भगवान गणेश सभी देवी-देवताओं में सर्वप्रथम पूजनीय हैं।

भारत के महाराष्ट्र (Maharastra) राज्य भगवान गणेश के आठ तीर्थ मौजूद हैं। जिन्हें अष्टविनायक मन्दिरों के नाम से जाना जाता हैं भगवान गणेश की इन मन्दिरों के विषय में कहा जाता है। कि यह मन्दिर स्वयंभू हैं। सामान्य या सरल भाषा में समझे तो यह मन्दिर स्वयं प्रकट हुए थे।

महाराष्ट्र के पुणे शहर में स्वयंभू के 6 मन्दिर और रायगढ़ मे 2 मंदिर विराजमान हैं। इन सभी मन्दिरों के विषय में कहा जाता है। कि यहां भगवान गणेश के आठ अलग अलग तरह की मूर्तियाँ विराजमान हैं या हम यूं कह सकते हैं। सभी आठ मन्दिरों में भगवान गणेश के आठ अलग रूप प्रकट हुए हैं। आइए जानतें हैं अष्टविनायक तीर्थ के विषय में विस्तारपूर्वक-

मयूरेश्वर या मोरेश्वर मंदिर | Mayureshwar or Moreshwar Temple

भगवान गणेश को समर्पित यह मन्दिर भारत में महाराष्ट्र राज्य के पुणे से लगभग 65 किलोमीटर दूर मोरागावं नामक जगह पर स्थित हैं। जब भी हम गणेश तीर्थयात्रा के विषय में बात करते हैं तो इस मनदिर को पहला और आखिरी मन्दिर कहा जाता हैं।

मन्दिर का निर्माण

इस मन्दिर का निर्माण लगभग 14वीं से 17वीं शताब्दी ई. तक माना जाता हैं। यह मन्दिर मोरागॉन गाणपत्य संप्रदाय के लोगों के लिए सबसे प्रमुख पूजनीय स्थान हैं। इस मन्दिर के विषय में अनेक दंतकथाएं प्रचलित हैं जिनमें से एक का वर्णन गणेश पुराण में हुआ हैं।

जिसमें कहा गया हैं कि भगवान गणेश जी के मयूरेश्वर अवतार ने यहां जन्म लिया था। गणेश जी के इस अवतार की 6 भुजाएं और उनका रंग श्वेत था। भगवान श्री गणेश के इस अवतार का प्रिय वाहन मयूर था। जिस कारण ही इस स्थान का नाम मयूरेश्वर भी पडा़। शिव व पार्वती के पुत्र गणेश जी का जन्म त्रेतायुग में सिंधु राक्षस के आतंक को खत्म करने के लिए हुआ था।

सिद्धिविनायक मन्दिर | Siddhivinayak Temple

भगवान श्री गणेश का सिद्धिविनायक मन्दिर भारत के मुम्बई राज्य में स्थित हैं। यह मंदिर भी अष्टविनायक मंदिरों में से एक हैं। यह मंदिर अहमदनगर जिले के कर्जत तालुका में सिद्धटेक में भीमा नदी के किनारे पर स्थित हैं।

मन्दिर का निर्माण

इस मंदिर का निर्माण लगभग 17-18 वीं शदी के आसपास माना जाता हैं। यह मंदिर एक पहाडी़ पर स्थित हैं जिसके चारों और कटीली झाड़ियां और बबूल के पेड़ हैं फिर भी भक्तगण अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए। इस पहाड़ की 7 बार परिक्रमा करने में जरा भी नही झिझकते है। इस मंदिर में श्री गणेश जी की सूंड दाहिनी ओर हैं। कहा जाता हैं कि अष्टविनायक मंदिरो में एकमात्र गणपति हैं ये जिनकी सूड़ दाहिनी ओर हैं ऐसे गणपति बहुत ही शक्तिशाली होते हैं अगर कोई भक्त इन्हें प्रसन्न कर लेता हैं। तो उसे अनेक प्रकार की सिद्धियां और शक्ति प्राप्त हो जाती है।

इस स्थान के विषय में मुद्गल पुराण में बताया गया है। जब ब्रह्मा जी ब्रह्मांड का निर्माण कर रहें थे। तभी भगवान विष्णुजी के कान के मैल द्वारा 2 राक्षसों की उत्पत्ति हुई। जिनका नाम मधु और कैटभ था। जो कि सृष्टि के निर्माण में बाधा उत्पन्न कर रहे थे। जिनके वध के लिए भगवान विष्णु को योगनिद्रा से बाहर आना पडा़। भगवान विष्णु ने मधु और कैटभ नामक राक्षसों का वध करने के लिए उनसे युद्ध किया।

जिसमें वे इन राक्षसों से हारकर भगवान शिव के पास पहुंचें और उनसे इस बात का कारण भी पूछा। भगवान शिव ने कहा कि आपने युद्ध शुरू करने से पहले गणेश जी का आवाह्न नही किया। क्योंकि भगवान गणेश ही शुरूआत और समस्या निदान के देवता हैं। यह बात जानने के बाद भगवान विष्णु ने सिद्धटेक में तपस्या कर सिद्धिविनायक को प्रसन्न किया। भगवान सिद्धिविनायक ने भगवान विष्णु की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हे अनेक प्रकार की सिद्धियां प्रदान की। इसी कारण इस स्थान का नाम सिद्धटेक के नाम से जाना जाता हैं।

बल्लालेश्वर पाली मंदिर | Ballaleshwar Pali Temple

भगवान गणेश (Lord Ganesha) का बल्लालेश्वर मंदिर महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के पाली गांव में स्थित हैं यह मन्दिर भगवान श्री गणेश के अनन्य भक्त बल्लाल के नाम पर बना हैं। इस मंदिर के विषय में एक मान्यता प्रचलित हैं। कि भगवान गणेश की भक्ति में बालक बल्लाल जब इतने लीन हो गये थे। कि उन्हे अपने घर वापस जाने का होश भी नही रहा।

इस बात से नाराज होकर उनके पिता ने उन्हे बहुत मारा और उनके द्वारा गणेश की प्रतिमा के रूप में पूजनीय उस पत्थर को भी फेंक दिया। इस घटना के बाद भी बालक बल्लाल जख्मी हालत में भी भगवान गणेश की भक्ति में लीन रहें।

मन्दिर का निर्माण

अपने भक्त की अटूट भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान गणेश ने बल्लाल को दर्शन दिए, और बल्लाल के आग्रह पर उन्होंने वहा स्थान ग्रहण कर लिया। इस मंदिर का निर्माण कार्य मोरेश्वर विट्ठल सिंदकर ने 1640 में करवाया था। इस मंदिर का परिसर को 2 झीलों बीच बसा हुआ हैं। इस मंदिर में 2 गर्भगृह भी स्थित हैं। इस मंदिर की शोभा और मजबूती के लिए 8 खम्भे हैं। इस मंदिर भगवान गणपति की प्रतिमा एक बड़े से पत्थर पर स्थापित हैं। यहां गणपति जी की सूढ़ उल्टे हाथ की तरफ हैं। इस प्रतिमा की आंखो और नाभि में हीरे लगे हैं।

इस मंदिर में आज भी बल्लालेश्वर की प्रतिमा से पहले ढुंढी विनायक की पूजा की जाति हैं। यह एक शिला खण्ड हैं जिसे भक्त बल्लाल द्वारा गणेश जी के रूप में सर्वप्रथम पूजा गया।

वरद विनायक गणपति | Varad Vinayak Ganpati

इस अष्टविनायक मंदिर को वरद विनायक या महाड गणपति मंदिर के नाम से भी जाना जाता हैं। यह भारत के महाराष्ट्र राज्य में रायगढ़ जिले के कर्जत और खोपोली के पास खालापुर तालुका में महाड सैमल शहर में स्थित है।

मन्दिर का निर्माण

भगवान स्वयंभू 1690 ई. में श्री धोंडू पौडकर जी को एक झील में मिली थी। वरदविनायक मंदिर का निर्माण 1725 में पेशवा सरदार रामजी महादेव बिवलकर द्वारा करवाया गया था। यह मंदिर एक सामान्य घर की तरह दिखता हैं। इस मंदिर में बना गौमुख सबको अपनी ओर आकर्षित करता हैं इस गौमुख द्वारा आज भी पवित्र जल का प्रवाह होता हैं। इस मंदिर में एक नंदीदीप हैं। जिसके विषय में कहा जाता हैं कि यह दीप 100 वर्ष से भी अधिक समय से लगातार जल रहा हैं। इस मंदिर में माघ चतुर्थी पर विशेष उत्सव मनाया जाता हैं। देशभर से नि:संतान दंपत्ति यहा संतान कामना से आते हैं।

चिंतामणि गणपति मंदिर | Chintamani Ganpati Temple

प्राचीन समय से ही यह मंदिर अस्तित्व में हैं। यह मंदिर महाराष्ट्र राज्य के पुणे जिले के हवेली नाम की जगह पर स्थित हैं। भगवान श्री गणेश को यहा चिंतामणि के नाम से पूजा जाता है। भगवान गणेश का यह चिंतामणि रूप बडी़ से बडी़ चितां हर लेता हैं।
कहा जाता हैं कि सृष्टि के निर्माता बह्मा जी स्वयं यहां अपनी मन की चिंता को वश में करने के लिए चितांमणि गणपति के शरण में आए थे।

गिरिजात्मज अष्टविनायक मंदिर | Girijatmaj Ashtavinayak Temple

अष्टविनायक में गिना जाने वाला यह गणपति जी का मंदिर भारत के महाराष्ट्र राज्य में पुणे के लेण्याद्री गाँव में स्थित है।
इस दिव्य मंदिर की बनावट कुछ इस तरह की है। कि सारा दिन यह सूरज देवता की रोशनी से प्रज्जवलित रहता हैं।

यह एकमात्र ऐसा अष्टविनायक मंदिर (Ashtavinayak Temples) हैं जो कि बौद्धिक गुफाओं के मध्य में एक ऊंची पहाडी़ पर बना हैं। इस स्थान के विषय में कहा जाता हैं कि माता पार्वती ने इस जगह पर ही पत्र प्राप्ति के उद्देश्य से कठोर तपस्या की थी। जब माता की तपस्या के फलस्वरुप उन्हें भगवान गणेश की प्राप्ति पुत्र रूप में हुई तो, लेण्याद्री में लगभग 15 वर्षों तक बाल लीलाएँ करके ही गिरिजात्मज गणेश जी ने अनेक दैत्य व राक्षसों का अंत किया था। इस मंदिर की प्रतिमा का मुख उत्तर दिशा की ओर है।

यह अष्टविनायक मंदिर एकमात्र ऐसि मंदिर हैं। जहा भगवान गिरिजात्मज की पूजा मंदिर के पिछले हिस्से से करते हैं। भगवान गिरिजात्मज का यह मंदिर एक गुफा मंदिर हैं। जहां तक पहुंचने के लिए भक्तों को लगभग 307 सीढियां चढ़नी होती हैं। जहां पर सैकडों श्रृद्धालु देशभर से अपनी मनोकामना की पूर्ति करने के लिए आते हैं।

विघ्नहर गणपति मंदिर | Vighnahar Ganpati Temple

यह पवित्र स्वयंभू का मंदिर भारत देश में महाराष्ट्र राज्य के पुणे जिले के ओज़ार नाम की जगह पर स्थित है। यह मंदिर विघ्नहर्ता को समर्पित हैं। ऐसा कहा जाता हैं कि अगर आप यहां आकर किसी कार्य में आ रहे विघ्न को दूर करने के लिए विघ्नेश्वर के सामने प्रार्थना करते हैं। तो भगवान विघ्नहर्ता सभी विघ्नों को हर लेते हैं। यह पौराणिक अष्टविनायक मंदिर विघ्नासुर राक्षस को पराजित करनी वाली कहानी से जुडा़ हुआ हैं।

महागणपति मंदिर | Mahaganpati Temple

यह मंदिर महाराष्ट्र के पुणे जिले के रंजन गाँव में स्थित है। इसका निर्माण लगभग 9 से 10 वीं शताब्दी में करवाया गया था। इस मंदिर के विषय में कहा जाता हैं कि भगवान शिव ने राक्षस त्रिपुरासुर को हराने के लिए इस स्थान पर भगवान गणेश की अराधना की थी।

इस मंदिर में भगवान गणेश की ऐसी दिव्य प्रतिमा मौजूद हैं। जिसे देखकर आपका मस्तक अपने आप नतमस्तक हो जाएगा। यहां पर भगवान गणेश का विशाल और सबसे शक्तिशाली रूप के दर्शन होते हैं। इस रूप की 10 सूढ़ व अनेको भुजाएं हैं। और वे अपनी दोनों पत्नी रिद्धि व सिद्धि के साथ कमल के पुष्प पर विराजमान हैं।

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निष्कर्ष | Ashtavinayak Temples

आज के इस लेख द्वारा हमने अष्टविनायक मंदिरों से सम्बन्धित महत्वपूर्ण जानकारी को आपके साथ शेयर किया है।

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